tag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post3443482119138569301..comments2023-06-03T14:30:56.067+05:30Comments on केरल पुराण: 24. भवभूतिबालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-62316385064392011252009-06-30T16:53:54.426+05:302009-06-30T16:53:54.426+05:30अन्ने, कालिदास, बाण, भारवी बचते हैं। उन पर भी लेख ...अन्ने, कालिदास, बाण, भारवी बचते हैं। उन पर भी लेख दें।<br /><br />संस्कृत श्लोकों के अर्थ भी दे दें तो अच्छा हो। सभी संस्कृत नहीं जानते।गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-54553196862405297342009-06-29T17:21:34.792+05:302009-06-29T17:21:34.792+05:30दोनों ही महाकवियों को मूलरूप में पढने और समझने का ...दोनों ही महाकवियों को मूलरूप में पढने और समझने का अपना भाग्य नहीं है परन्तु इस कथा में शिवजी के कथन में और माँ पार्वती के परीक्षण में जो बड़ा सन्देश छिपा है वह समझ में आ गया, ऐसा लगता है.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-56814966162113970362009-06-29T14:43:28.902+05:302009-06-29T14:43:28.902+05:30बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने .
धन्यवादबहुत सुंदर लेख लिखा आप ने .<br />धन्यवादराज भाटिय़ाhttps://www.blogger.com/profile/10550068457332160511noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-43501045125246493162009-06-29T11:46:34.761+05:302009-06-29T11:46:34.761+05:30भवभूति के कृतित्व के संबंध में कुछ भी अनावश्यक होग...भवभूति के कृतित्व के संबंध में कुछ भी अनावश्यक होगा । सब कुछ सर्वसिद्ध है । सुन्दर प्रसंग । आभार ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-87994200418346942462009-06-29T11:27:22.453+05:302009-06-29T11:27:22.453+05:30सुन्दर प्रस्तुति. आभारसुन्दर प्रस्तुति. आभारP.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-18363757678396201422009-06-29T10:44:37.811+05:302009-06-29T10:44:37.811+05:30"...अत्यन्त आधावादिता और आत्मविश्वास.."
..."...अत्यन्त आधावादिता और आत्मविश्वास.."<br /><br />की जगह <br /><br />"अत्यन्त आशावादिता और आत्मविश्वास"अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-58017554265115190382009-06-29T09:42:20.819+05:302009-06-29T09:42:20.819+05:30मुझे तो वह श्लोक सबसे पसन्द है जो मानवमात्र के लिय...मुझे तो वह श्लोक सबसे पसन्द है जो मानवमात्र के लिये आशावादिता की प्रतिमूर्ति है-<br /><br />ये नामकेचिद प्रथयन्त अवज्ञां,<br />जानन्तु ते तान् प्रति नैष यत्न:|<br />उत्पत्य्स्यते हि मम् कोपि समानधर्मा,<br />कालोऽयं निर्वधिर्विपुलास्च पृथ्वी||<br /><br />(उत्तररामचरितम् की रचना के बाद पण्डितों ने भवभूति को उतना सम्मान नहीं दिया। इस पर उन्होने अत्यन्त आधावादिता और आत्मविश्वास का परिचय देते हुए कहा-<br /><br />कुछ अनाम लोग जो मेरी कृति की अवज्ञा कर रहे हैं वे जान लें कि यह यत्न उनके लिये किया ही नहीं गया है। अवश्य ही कोई मेरा समानधर्मा उत्पन्न होगा (तब इस रचना को अवश्य ही सम्मान मिलेगा) क्योंकि इस काल की कोई सीमा नहीं है और पृथ्वी बहुत बड़ी है। )अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-20667559088989346462009-06-29T08:02:29.001+05:302009-06-29T08:02:29.001+05:30मुझे लगता है कि कालिदास भले ही अन्य रसों में भवभूत...मुझे लगता है कि कालिदास भले ही अन्य रसों में भवभूति से कहीं आगे रहे होंगे लेकिन करूण रस के मामले में कालिदास उनकी बराबरी नहीं कर सकते। त्वया जगन्ति पुण्यानि, त्वया पुण्यानी जगन्तः अर्थात राम कहते हैं सीता से कि तुमसे सारा जग पवित्र है और लोग तुम्हारी पवित्रता पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं। भवभूति का उत्तररामचरित मास्टरपीस है।shubhihttps://www.blogger.com/profile/09707058005458267824noreply@blogger.com