tag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post7121941456729261350..comments2023-06-03T14:30:56.067+05:30Comments on केरल पुराण: 8. स्वामी विल्वमंगलबालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttp://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-85180704839539587162009-06-22T18:35:04.992+05:302009-06-22T18:35:04.992+05:30बालसुब्रमण्यम जी,
जिस प्रकार आज भी धार्मिक प्रवचन ...बालसुब्रमण्यम जी,<br />जिस प्रकार आज भी धार्मिक प्रवचन करने की पीठ को कृष्ण द्वैपायन व्यास के सम्मान में व्यास पीठ कहकर पुकारा जाता है और उस पर प्रवचन कर रहे व्यक्ति को साक्षात व्यास ही माना जाता है या आदि शंकराचार्य के नाम पर वर्तमान पीथाधाक्षों को भी शंकराचार्य ही कहा जाता है, उसी प्रकार प्राचीन काल में कोई भी श्रेष्ठ काम करने वाले को उस परम्परा के आदिपुरुष के नाम से ही पुकारा जाता था. इसलिए भारद्वाज के सारे अनुगामी, उनके गुरुकुल में शिक्षित, या उनकी वंश-परंपरा वाले सभी आज भी अपने को भारद्वाज ही कहते हैं. ठीक उसी तरह <br />मूल स्वामी विल्वमंगल के बाद प्रत्येक नए मंदिर की स्थापना करने वाले महानुभावों को स्वामी विल्वमंगल ही कहा गया हो तो कोई आश्चर्य नहीं है, ऐसा मेरा अनुमान है.Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-57848107374251203372009-05-12T18:19:00.000+05:302009-05-12T18:19:00.000+05:30प्रिय सुब्रमण्यम जी: आप निरंतर इन कथाओं के साथ बने...प्रिय सुब्रमण्यम जी: आप निरंतर इन कथाओं के साथ बने रहे हैं, इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूं।<br /><br />एक स्पष्टीकरण। ये सारी कथाएं कोट्टारत्तिल शंकुण्णि द्वारा लिखी गई ऐदीह्यमाला नामक मलयालम ग्रंथ से ली गई हैं। यहां जो विचार व्यक्त किए गए हैं, उनमें से कोई भी मेरे नहीं हैं। मैं मात्र अनुवाद की भूमिका में अप्रत्यक्ष रूप से इन कथाओं में उपस्थित हूं।बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायणhttps://www.blogger.com/profile/09013592588359905805noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-34192525600635431992009-05-12T14:16:00.000+05:302009-05-12T14:16:00.000+05:30सुन्दर मिथक. आपका सोचना सही होना चाहिए. निश्चित ह...सुन्दर मिथक. आपका सोचना सही होना चाहिए. निश्चित ही विल्वमंगल एक नहीं अनेकों रहे. ऐसा कहीं बताया भी गया है. भगवती शूद्र लोगों की देवी हुआ करती थी. ब्राह्मण उन मंदिरों की वर्जना करते थे. केरल में वैदिक धर्म की स्थापना के पूर्व शक्ति स्वरूपिणी भगवती का बोल बाला था, वैसे अब भी है. वैसे इस गाली गलौज वाली बात भी सत्य है परन्तु इसके पीछे कहीं बौद्ध धर्मावलम्बियों/जैनियों को भगाने का भी कुछ खेल रहा है.PN Subramanianhttp://mallar.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1404778002552917730.post-16754998332680551182009-05-12T12:52:00.000+05:302009-05-12T12:52:00.000+05:30चूंकि इनको प्रतिष्ठित करते समय स्वामी ने अपशब्द ("...चूंकि इनको प्रतिष्ठित करते समय स्वामी ने अपशब्द ("पुंश्चली" अर्थात छिनाल) कहा था, इसलिए इस देवी को असभ्य गीत एवं गाली-गलौज सुनना अत्यंत प्रीतिकर लगता है। चेरत्तला के उत्सव में गाए जानेवाले अश्लील गीत तो प्रसिद्ध ही हैं।"<br /><br />रोचक है यह जानना । धन्यवाद ।Himanshu Pandeyhttps://www.blogger.com/profile/04358550521780797645noreply@blogger.com