(कोट्टारत्तिल शंकुण्णि विरचित मलयालम ग्रंथ ऐतीह्यमाला का हिंदी रूपांतर)
कुछ और दिन बीतने के बाद अपने बेटे का वेदाध्ययन रोककर उसे घर वापिस ले जाने के इरादे से वेणमणि नंबूतिरिप्पाड के पिता तृश्शिवप्पेरूर आए। जब वेणमणि नंबूतिरिप्पाड को पता चला कि उसके पिता उसे घर ले जाने के लिए आए हैं, तो यह सोचकर वह अत्यंत दुखी हुआ कि अब वह यक्षी से अलग हो जाएगा। उस रात जब यक्षी उसके पास आई तो वेणमणि नंबूतिरिप्पाड ने उससे अत्यंत दुखी होकर कहा, "मुझे घर ले जाने के लिए मेरे पिता आए हैं। उनका आदेश है कि कल सुबह ही मुझे यहां से चलना होगा। अब मैं क्या करूं?" तब यक्षी ने कहा, "आप बिलकुल चिंता न करें। आप जब अपने घर पहुंच जाएंगे, तब मैं वहीं आने लगूंगी।" यह सुनकर वेणमणि नंबूरिप्पाड की चिंता सब दूर हो गई और दोनों ने रोज की तरह सुखपूर्वक रात बिताई। सुबह होने से पहले यक्षी चली गई। वेणमणि नंबूतिरिप्पाड के पिता बेटे को लिए अपने घर चले गए। अब वेणमणि नंबूतिरिप्पाड अपने घर रहने लगा और यक्षी भी हर रात नियमित रूप से वहीं आने लगी।
कुछ और समय बीतने पर पिता ने सोचा कि अब बेटे का विवाह करना चाहिए और उन्होंने कन्याओं की जन्मपत्रियां जमा करना शुरू कर दिया। यह देखकर पुत्र ने सोचा कि यदि मैं शादी कर लूंगा तो यक्षी मेरे पास आना बंद कर देगी और वह बहुत दुखी रहने लगा। अंत में उसने एक दूसरे व्यक्ति के जरिए अपने पिता को सूचित किया कि मैं शादी नहीं करूंगा और आप मुझे इसके लिए बाध्य न करें। यह सुनकर पिता को असह्य दुख और क्रोध हुआ और उन्होंने बेटे को तुरंत अपने सम्मुख बुलवाया और उससे कहा, "क्यों बेटे, शादी करने की इच्छा नहीं है, क्यों? तू कबसे इतना नालायक हो गया? मेरी तमन्ना थी कि तेरी शादी होकर तेरे दो-तीन बच्चों को इन आंखों से देखकर संसार से विदा लूं। वह सब पूरी न भी हुई, तो भी इस वंश को नाश से बचाना तो है ही। तू शादी नहीं करेगा तो वह कैसे हो सकेगा?
बेटाः- पिताजी, आपका कहना सब ठीक है। इसका कोई समाधान भी मेरे पास नहीं है। पर मैं शादी नहीं करूंगा। आप इसके लिए मुझ पर जोर न डालें।
पिताः- शादी नहीं करूंगा, यह कह देने से कैसे चलेगा? न करने का कारण भी तो मैं जानूं।
बेटाः- कारण कुछ भी नहीं है। मेरा मन नहीं है, बस।
पिताः- जो कार्य करना चाहिए, उसे करने का अगर तेरा मन नहीं है तो इस घर में तू नहीं रहेगा। जहां मन करे वहीं चला जा। नालायक, तेरा मन नहीं करता, क्यों? मेरे सामने खड़ा होकर यह सब बकने की तेरी हिम्मत कैसे हुई? जा, मेरी नजरों से दूर हो जा। निकम्मे, अब तू इस घर में नजर आया तो तेरी खैर नहीं।
पिता द्वारा इस प्रकार क्रोधपूर्वक लताड़े जाने से साधु-हृदय एवं शुद्धात्मा वेणमणि नंबूतिरिप्पाड को असहनीय पीड़ा हुई। यह सब रात के भोजन से पहले हुआ था। इसलिए दुखी होकर वह रात का भोजन किए बगैर ही रोते-रोते अपने कमरे में जाकर लेट गया। नियत समय पर यक्षी उसके पास आई। उस समय नंबूतिरी दुखी होकर लेटे-लेटे आंसू बहा रहा था। यक्षी समझ गई कि नंबूतिरी किसी बात से अत्यंत दुखी एवं चिंतित है। इसलिए उसने नंबूतिरी से उसकी परेशानी का कारण पूछा। लेकिन शादी के लिए उस पर पड़ रहे दबाब की बातें यक्षी से कहने में उसे लज्जा आई, इसलिए पहले तो उसने कुछ नहीं कहा और बात को टालने की कोशिश की। अंत में जब यक्षी ने जिद पकड़ ली तो उसे सब कुछ बताना ही पड़ा। तब यक्षी ने कहा, "आप बिलकुल चिंतित न हों। आप निश्चिंत होकर शादी कर लें। मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है। आप विवाह नहीं करेंगे तो आपका वंश समाप्त हो जाएगा।
मेरी वजह से ऐसा हो जाए तो मुझे बहुत अधिक दुख होगा। मेरा एक ही आग्रह है, शादी के बाद आप मेरी उपेक्षा न करें। आप हर दूसरे दिन अपनी पत्नी के साथ सहशयन करें। बाकी दिन दूसरी जगह पर लेटें। मैं वहां आपके पास आ जाऊंगी। इसलिए कल ही सुबह जाकर आपके पिता जी को सूचित कर दीजिए कि आप विवाह करने के लिए तैयार हैं। पिता जी की बात न मानना उचित नहीं।" यह सुनकर नंबूतिरी अत्यंत प्रसन्न हुआ और दोनों ने बाकी रात सुखपूर्वक बिताई। सुबह होने लगी तो यक्षी चली गई। नंबूतिरी ने भी उठकर पिता के पास जाकर कह दिया कि मैं विवाह के लिए तैयार हूं। उसके पिता यह सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने बिना विलंब एक अच्छे मुहूर्त में बेटे की शादी बड़ी धूम-धाम से करा दी।
शादी के बाद वेणमणि नंबूरी यक्षी के कहे अनुसार हर दूसरी रात अपनी पत्नी के साथ और बाकी रातें यक्षी के साथ बिताने लगा। कुछ समय बाद उसकी पत्नी गर्भवती हुई और दस महीने के बाद एक पुत्र को जन्म दिया। नंबूरी ने उसका जातकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन आदि अपने पिता के मार्गदर्शन में उचित समय पर यथायोग्य ढंग से किए। इसके बाद उसके पिता, जैसी उनकी इच्छा थी, अपने पौत्र का मुख देखकर संतोषपूर्वक एक दिन इस संसार से कूच कर गए। बेटे ने उनका पिंडदान, बरसी आदि सभी संस्कार भली-भांति पूरे किए।
(... जारी)
17. वेणमणि नंबूरिप्पाड - 1
06 जून, 2009
17. वेणमणि नंबूरिप्पाड - 2
लेबल: वेणमणि नंबूरिप्पाड
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2 Comments:
एक पत्रिका आती थी 'चन्दामामा'. शायद अब भी आती हो. इस पुराण की कहानियाँ कभी कभी उसकी याद दिला देती हैं।
चंदामामा अब भी प्रकाशित होती है, कई भाषाओं में (संस्कृत में भी)। उसका एक वेब साइट भी है, जो केवल अंग्रेजी में है -
http://www.chandamama.com/
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