05 जून, 2009

17. वेणमणि नंबूरिप्पाड - 1

(कोट्टारत्तिल शंकुण्णि विरचित मलयालम ग्रंथ ऐतीह्यमाला का हिंदी रूपांतर)

वेणमणि नंबूरिप्पाड का घराना कोच्ची राज्य के वेल्लारप्पल्ली नामक प्रदेश में स्थित है। इस घराने में एक समय मंदबुद्धिवाला एक ब्राह्मण कुमार हुआ था। उसके पिता ने उसका यथासमय उपनयन, समावर्तन आदि सब करवाया और उसे तृश्शिवप्पेरूर ब्रह्मस्व मठ (गुरुकुल) में वेदाध्ययन हेतु दाखिल करा दिया। वह वेदाध्ययन करते हुए तृश्शिवप्पेरूर में अपने सहपाठियों के उपहास का पात्र बन कर ही रहता था। चूंकि वह मंदबुद्धि और सरल स्वभाव का था, इसलिए धूर्त लड़के उसे तरह-तरह से तंग करते थे तथा उसका मजाक उड़ाते थे और उसे अनेक प्रकार से कष्ट देते थे। उसे मुसीबतों में फंसाना आदि भी उनके मनबहलाव का प्रिय साधन था।

उसी समय तृश्शिवप्पेरूर वडक्कुमनाथन देवालय के गर्भगृह के मंडप की भित्ति पर एक चित्रकार ने एक यक्षी का चित्र बनाया। चूंकि वह चित्र सभी लक्षणों से पूर्ण एवं सर्वांगसुंदर था, इसलिए उस जगह को एक यक्षी का सान्निध्य प्राप्त हो गया। यह यक्षी रात के समय वहां के युवा पुरुषों के पास सहशयन हेतु जाती थी और उन्हें इस प्रकार सताती थी। उस इलाके में यक्षी द्वारा बाधित किए गए अनेक पुरुष उसके साथ दिव्य रतिक्रीड़ा के अनुभवों को सह सकने की शक्ति न होने से सुबह होने तक चल बसे। कुछ लोग इतने क्षीण हो गए कि बिस्तर से उठना भी उनके लिए असंभव हो गया और वे अशक्त अवस्था में जीवन बिताने को बाध्य हो गए। शारिरिक दृष्टि से अत्यंत बलिष्ठ एवं साहसी कुछ पुरुष ही उस यक्षी के साथ सुखपूर्वक एवं बिना कसी दुर्घटना के रति-सुख का आनंद लूट सके। चूंकि किसी को पता नहीं था कि यक्षी किसे रात्रिशय्यन के लिए चुनेगी, उस इलाके के सभी पुरुष अत्यंत भय एवं चिंता में रात गुजारते थे। ऊपर जिस चित्र का उल्लेख हुआ है, उसके पास जाकर यदि कोई पुरुष कह दे "आज रात मेरे पास आना", तो उस रात वह यक्षी उसके पास चली आती थी। यह भी उस यक्षी की एक विशेषता थी।

एक दिन सुबह कुछ लड़के और वेणमणि नंबूरिप्पाड भगवद्दर्शन हेतु वडक्कुनाथन देवालय गए। वहां जाकर यथाक्रम एक-एक देवी-देवता की वंदना करते हुए अंत में वे सब उस यक्षी के चित्र के समीप पहुंचे। तब सभी लड़कों ने वेणमणि नंबूरिप्पाड को बहकाकर उससे कहलवाया, "आज मेरे पास आना"। उसे उसका तात्पर्य, परिणाम आदि के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। भगवद्दर्शन के बाद वे सब ब्रह्मस्व मठ लौट गए। संध्यावंदन और रात का भोजन सब समाप्त करके वे नियमानुसार अपनी-अपनी जगह जाकर लेट गए। जब सब सो गए तब यक्षी वेणमणि नंबूतिरिप्पाड के पास पहुंची। यक्षी के स्पर्श से वह जग गया। फिर उन दोनों ने रतिक्रीड़ा का सुख लेने के बाद सहशयन किया। उस दिन तक ब्रह्मचर्य व्रत का कठोरता से पालन करते आए और मैथुन-संभोग सुख से पूर्णतः अनभिज्ञ वेणमणि नंबूतिरिप्पाड को यक्षी के साथ प्राप्त अनुभव परमानंद जैसा लगा। इसी प्रकार उस यक्षी को लगा कि आज के समान तृप्ति एवं आनंदानुभूति इससे पहले कभी भी उसे नहीं हुई है। मैथुन-संभोग सुख भरपूर अनुभव कर लेने के बाद जब अंतिम याम की घड़ी आई, तब यक्षी ने कहा, "अब मैं यहां नहीं रुक सकती। मनुष्यों की चहल-पहल आरंभ होने से पहले मुझे अपने स्थान पर पहुंचना है। इसलिए मैं अब जाती हूं।" तुरंत वेणमणि नंबूरिप्पाड ने कहा, "आज की रात भी आओगी?" तब यक्षी ने कहा,"यदि आपकी ऐसी इच्छा हो और आप मुझसे संतुष्ट हों तो आज क्या हर रात मैं आपके पास आऊंगी। लेकिन एक शर्त है। वह भी बता देती हूं। आप मेरी अनुमति के बगैर किसी अन्य स्त्री का स्पर्श नहीं करेंगे। किसी दूसरी स्त्री को छुएंगे तो फिर मैं आपके पास नहीं आऊंगी।"

वेणमणि नंबूतिरिप्पाडः- नहीं-नहीं, तुम्हारी अनुमति के बिना मैं किसी भी स्त्री को नहीं छुऊंगा।

यह सुनकर यक्षी संतुष्ट होकर बोली, "तब मैं नियमित रूप से आपके पास आऊंगी" और वह चली गई। इसके बाद हर रात वह वेणमणि नंबूतिरिप्पाड के पास आती रही और कुछ ही दिनों में दोनों एक-दूसरे के साथ प्रेमपाश में बंध गए।

(... जारी)

1 Comment:

Astrologer Sidharth said...

एक और रहस्‍यमयी कथा की शुरूआत। अच्‍छा है आगामी कडि़यों का इंतजार रहेगा।

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