(कोट्टारत्तिल शंकुण्णि विरचित मलयालम ग्रंथ ऐतीह्यमाला का हिंदी रूपांतर)
४.
गठिया और पेट की बीमारी से पीड़ित एक व्यक्ति अनेक चिकित्सकों से इलाज कराने के बावजूद ठीक नहीं हो पाया और अंत में वह वयक्करै अच्छन मूस के पास आया और अपनी सारी तकलीफ उन्हें बताई। यह रोगी शायद चेंगनूर का निवासी था। रोग का पूरा विवरण सुनकर मूस ने पूछा, "आपके इलाके में मुदिरै (एक प्रकार की दाल) तो बहुत होती है न।" रोगी ने कहा, "हां, वह तो बहुत होती है। इस दास के खेतों में ही सालाना दो सौ बोरी होती है।" मूस, "तब उसे भूनकर उसका छिलका निकालकर दाल बना लें और उसे उबालकर कंजी (चावल की पतली लपसी) के साथ रोज खाएं।" यह सुनकर रोगी को बिलकुल संतोष नहीं हुआ। लेकिन मूस के सामने कुछ कहने की उसको हिम्मत नहीं हुई। इसलिए वह चुपचाप घर लौट आया। घर पहुंचने पर उसकी पत्नी ने चिकित्सा के संबंध में पूछा। तब रोगी ने कहा, "ऐसा लगता है कि मेरी बीमारी अब ठीक नहीं होगी। घोड़े की तरह रोज मुदिरै खाने की उन्होंने सलाह दी है। ठीक हो सकनेवाला रोग होता तो वे ऐसी बेतुकी बात क्यों कहते? जब मैं उनके पास गया था, तब वहां बहुत-से रोगी मौजूद थे। उन सबको उन्होंने काढ़ा, गोली, दवा आदि लिखकर दिए, केवल मुझे उन्होंने इस प्रकार का साधारण इलाज बताया। मेरी बीमारी शायद लाइलाज है, इसीलिए उन्होंने ऐसा कहा होगा।" पत्नी ने कहा, "यों सोचना ठीक नहीं। जो भी हो, उनके कहे मुताबिक कुछ दिन करके देखने में हर्ज ही क्या है?" रोगी भी सहमत हो गया। अच्छन मूस के कहे अनुसार दस-बारह दिन करने पर उसे लगने लगा कि वह ठीक हो रहा है। उसने यह चिकित्सा चालीस दिन जारी रखी। तब वह बिलकुल ठीक हो गया।
५.
एक बार एक स्त्री ने ऊपर के टांड़ पर रखी किसी चीज को उठाने के लिए अपना दाहिना हाथ ऊपर किया। वह हाथ वैसा ही अकड़ गया और बहुत कोशिश के बावजूद उसे नीचे नहीं ला सकी। बहुत से वैद्यों ने उसका इलाज किया। नस व मांसपेशी के विशेषज्ञों ने अपनी विद्या आजमाई, मालिश करने वालों ने मालिश करके देखी, हड्डी जमाने वालों ने भी प्रयत्न करके देखा, पर कुछ फायदा नहीं हुआ। कुछ ने तो यह भी कह दिया कि वह देवाराधना की एक खास मुद्रा है। इस प्रकार बहुत सी चिकित्साओं और झाड़-फूक आदि के बाद भी स्त्री का हाथ नीचे नहीं आ सका। अंत में उस स्त्री को वयक्करै अच्छन मूस के पास लाकर सारी बात उन्हें बताई गई। थोड़ी देर मन ही मन विचार करने के बाद मूस ने कहा कि उस स्त्री को एक ऊंचे पीढ़े पर खड़ा कर दो। स्त्री के साथ आए लोगों ने वैसा ही किया। इसके बाद मूस ने स्त्री के स्वस्थ बाएं हाथ को छत पर लगे एक छल्ले के साथ मजबूती से बांध देने को कहा। वह भी किया गया। तब तक वहां बहुत-से लोग एकत्र हो गए थे। स्त्री का पति, भाई आदि रिश्तेदार भी वहां थे। जब यह सब इंतजाम पूरा हो गया, तब मूस ने स्त्री के पति को बुलाकर उससे कहा, "स्त्री की धोती उतारकर फेंक दीजिए।" यह सुनकर वह आदमी भयंकर दुविधा में पड़ा गया। इतने सारे लोगों के सामने मूस के आदेश का पालन करना तो कठिन था, पर मूस से यह कहना उससे भी अधिक कठिन था कि मैं आपके कहे अनुसार करने में असमर्थ हूं। सो वह किंकर्तव्यविमूढ़ होकर चुपचाप खड़ा रहा। मूस का आदेश सुनकर स्त्री की जो दशा हुई उसका वर्णन आवश्यक ही नहीं है। स्त्री के पति को तैयार न देखकर मूस ने कहा, "आपको हिचक हो रही हो तो मैं ही यह काम कर देता हूं।" यह कहकर वे स्त्री के पास गए और उसकी धोती का सिरा पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। मूस का हाथ धोती की ओर बढ़ना और स्त्री के ऊपर उठे हाथ का नीचे आना एक साथ हुआ। जब स्त्री को लगा कि उसके वस्त्र अभी उतारे जानेवाले हैं, तो वह चिल्लाई, "हे भगवान! ऐसा न करें!" और तुरंत अपने हाथ से धोती को मजबूती से पकड़ लिया। अच्छन मूस अपनी जगह आकर बैठ गए। एक बार नीचे आ जाने के बाद स्त्री का हाथ पहले जैसे ही काम भी करने लगा। यह देखकर सब लोग आश्चर्यचकित रह गए। मूस ने स्त्री का बाया हाथ खोल देने और उसे ले जाने की अनुमति दे दी, और उसके रिश्तेदारों ने ऐसा ही किया।
६.
एक बार खूब मुंह फाड़कर जंभाई लेने के बाद एक व्यक्ति को अपना मुंह बंद करना असंभव हो गया। हर समय उसका मुंह खुला का खुला ही रहता था। उसने पत्थर गरम करके सिंकवाया, तेल की मालिश करवाई तथा अनेक प्रकार से इलाज करवाकर देखा, पर मुंह बंद न हो सका। अंत में उसे वयक्करै अच्छन मूस के पास जाना पड़ा। सब विवरण सुनकर मूस ने अपने दाएं हाथ से रोगी की टोढ़ी पर और बाएं हाथ से उसके गाल पर एक साथ प्रहार किया। उसी के साथ रोगी का मुंह भी बंद हो गया और उसकी तकलीफ भी दूर हो गई।
अच्छन मूस के दिव्यतापूर्ण एवं विस्मयकारी कार्यों की इस प्रकार की अनंत कथाएं हैं। यह सब उनके गुरुत्व एवं हस्तपुण्य का ही प्रताप है, यह कहना शायद आवश्यक नहीं है। गुरुत्वशाली व्यक्ति को तत्कालोचित युक्ति अपने-आप सूझ जाती है। हस्तपुण्य वाला व्यक्ति कुछ भी करे, वह वांछित फल प्रदान करता है।
(समाप्त। अब नई कहानी।)
19. वयक्करै अच्छन मूस - 1
16 जून, 2009
19. वयक्करै अच्छन मूस - 2
लेबल: वयक्करै अच्छन मूस
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2 Comments:
बहुत सुंदर।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
थोड़ा 'केरलीय आयुर्वेद' के बारे में बताएँगे ? शायद उसे नागार्जुन पद्धति कहते हैं। सिलवासा में इस शाखा के एक वैद्य मिले थे। उनकी दवाओं से लाभ भी हुआ था।
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