21 जून, 2009

ऐतीह्यमाला के बारे में कुछ बातें

पिछले पोस्ट के कंठघोरन हाथी की कहानी के साथ ही कोट्टारत्तिल शंकुण्णि की ऐतीह्यमाला का प्रथम भाग पूर्ण हुआ।

जैसा कि मैंने शुरू में बताया था, ये कहानियां पहले मलयालम के एक अखबार में धाराप्रवाह छपी थीं। यही कारण है कि अधिकांश कहानियां छोटी और रोचक शैली में लिखी गई हैं।

लगभग सभी कहानियों में केरल के नंबूरी ब्राह्मणों की प्रशस्तियां हैं। केरल के इन ऐतीह्यों को आठ भागों में संकलित किया गया है। इनमें कुल 125 कहानियां हैं। अब तक आप भाग 1 की 21 कहानियां पढ़ चुके हैं।

प्रत्येक भाग की पहली कहानी किसी देवी या मंदिर के बारे में होती है। इसका अपवाद प्रथम भाग है, जिसकी पहली कहानी एक राजा के बारे में है, यद्यपि उसके अंतिम अंश में भी एक मंदिर का जिक्र आता है।

प्रत्येक भाग की अंतिम कहानी कोई गज कथा होती है। प्रथम भाग की अंतिम कथा थी कंठघोरन नामक हाथी की कहानी।

प्रत्येक भाग में यों तो सभी कहानियां अपेक्षाकृत छोटी ही होती हैं, पर एक कहानी ऐसी भी होती है, जो खूब लंबी और अनेक अंतर्कथाएं लिए हुए होती है। प्रथम भाग की कहानी परयी से जन्मा पंदिरम कुल द्रष्टव्य है, जिसमें 9 अंतर्कथएं हैं।

प्रत्येक भाग में देवी-देवता, पंडित, भूत-प्रेत, राजा, योद्धा, बावर्ची, वैद्य, आदि से संबंधित एक-दो कहानियां रहती हैं, जिससे रोचकता निरंतर बनी रहती है।

कहानियों में अप्रत्याशित मोड आते रहते हैं और अविश्वसनीय बातें भरी पड़ी हैं, पर इन्हें सब लेखक इस तरह से बयान करता है मानो वे दैनंदिन के जीवन में नित्य ही घटती हों। इस ग्रंथ के इतना लोकप्रिय होने के पीछे यही कारण है।

इन कहानियों को केवल मनोरंजन के उद्देश्य से पढ़ें। इनमें जो नैतिकता, समाज व्यवस्था और सामाजिक मूल्य निहित हैं, वे सब अब पुराने पड़ चुके हैं।

4 Comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर.
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

अच्छा है बीचे बता दिया, नाहीं तो हम जाने का समझ बैठते !

P.N. Subramanian said...

आपका प्रयास बहुत अच्छा रहा. अगली श्रंखला के इंतज़ार में.

Astrologer Sidharth said...

इस ब्‍लॉग की हर नई पोस्‍ट रसगुल्‍ले जैसी होती है। इस बार तो खाली मुंह चलाकर जा रहे हैं। :)

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