25 मई, 2009

विषयांतर 1 : महाराजा मार्तांडवर्मा और राम वर्मा

कोल्लेत्तोट्टिल गुरुक्कल वाली कहानी में जिन मार्त्तांडवर्मा और राम वर्मा राजाओं का जिक्र आया है, वे ऐतिहासिक पुरुष हैं। ये दोनों तिरुवितांकूर राजवंश के यशस्वी सदस्य थे। मार्तांडवर्मा इस राजवंश के सबसे प्रतापी राजा थे जिन्होंने राज्य की सीमा को केरल के अधिकांश भागों में फैलाया। उनकी सबसे महान उपलब्धि यह थी कि उन्होंने अपनी नौ सेना से डच उपनिवेशवादियों को ऐसी करारी शिकस्त दी कि डचवासियों का भारत पर राज करने का सारा सपना सदा के लिए चकनाचूर हो गया और वे इंडोनीशिया के अपने उपनिवेशों में लौट गए। यह अच्छा ही हुआ क्योंकि डच अंग्रेजों से कहीं अधिक क्रूर, विध्वंसक और पिछड़े हुए यूरोपीय शक्ति थे और यदि वे भारत में अपना प्रभाव जमा लेते, तो हमारी कहीं अधिक दुर्गति हुई होती।

(चित्र शीर्षक : डच सेनापति महाराजा मार्तांडवर्मा के समक्ष आत्म-सपर्पण करते हुए।)

मार्तांडवर्मा ने 1729 से 1758 तक राज किया, उसके बाद उनके योग्य भांजे राम वर्मा ने राज्य की बागडोर संभाली। राम वर्मा एक निष्पक्ष और कुशल शासक थे, जिन्होंने धर्मशास्त्रों के अनुसार अपनी प्रजा के कल्याण को ध्यान में रखते हुए शासन किया। इसलिए उन्हें धर्म राजा की उपाधि भी प्राप्त हुई। इनका राज्यकाल 1758 से 1798 तक था।

(चित्र शीर्षक: महाराजा राम वर्मा)

इनके राज्यकाल में टीपू सुलतान ने मलबार (उत्तरी केरल) पर आक्रमण किया था, और वहां धार्मिक उत्पीड़न शुरू कर दिया था। इस उत्पीड़न से बचने के लिए भागकर आई जनता को टीपू सुल्तान की धमकियों की कोई परवाह न करते हुए राम वर्मा ने अपने राज्य में शरण दी। इससे उनके आत्म-विश्वास, सैन्य शक्ति और राज्य संगठन की उत्कृष्ठता का परिचय मिलता है, क्योंकि उन दिनों टीपू सुल्तान बहुत ही शक्तिशाली था और उससे वैर मोल लेना कोई मामूली बात नहीं थी।

4 Comments:

P.N. Subramanian said...

मार्तंडा वर्मा और राम वर्मा के बारे में बताने के लिए आभार

Udan Tashtari said...

बहुत आभार इस जानकारी का!!

Astrologer Sidharth said...

बिल्‍कुल नई जानकारी।

आपके ब्‍लॉग से लगता है दक्षिण में खडे होकर इतिहास के झरोखे से उत्‍तर भारत को देख रहे हैं।

Smart Indian said...

मार्तंडवर्मा और रामवर्मा के बारे में जानकारी के लिए बहुत आभार!

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