29 मई, 2009

15. मंगलप्पिल्लि मूत्ततु और पुन्नयी का पणिक्कर - 1

(कोट्टारत्तिल शंकुण्णि विरचित मलयालम ग्रंथ ऐतीह्यमाला का हिंदी रूपांतर)

तिरुवितांकूर में तिरुवल्ला तालुके के आरन्मुलै मंगलप्पिल्ली नामक घराने में पुराने जमाने में मूत्ततु नाम का ज्योतिषशास्त्र-निष्णात पंडित हुआ था। वह कुट्टंपेरूर नालेकाट्टु में आज विद्यमान शंकरनारायण का पितामह था और प्रसिद्ध ज्योतिषी संप्रतिपिल्ला उसका सहपाठी और एक अंतरंग मित्र था। एक बार जब मूत्ततु कहीं जा रहा था तब यह सोचकर कि अपने मित्र से भी मिलता चलूं वह नालेकाट्टु गया। तब एक पोट्टि (ब्राह्मणों की एक जाति का व्यक्ति) अपना विवाह करने का निश्चय करके कई लड़कियों की जन्मपत्रियां तथा स्वयं अपनी जन्मपत्री लेकर संप्रति के पास इस उद्देश्य से आया हुआ था कि अपने लिए ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से सुमेल कन्या का चयन हो सके। जब मूत्ततु घर में प्रविष्ट हुआ तो संप्रतिपिल्लै ने उसका ससम्मान स्वागत किया और उसे अपने पास बैठाया और दोनों थोड़ी देर परस्पर कुशलक्षेम पूछते रहे। उसके बाद संप्रतिपिल्लै ने पोट्टि की ओर इशारा करके कहा, "ये विवाह करने की इच्छा रखते हैं और जन्मपत्रियां मिलवाने के लिए आए हैं। इनके पास ढेर सारी कन्याओं की जन्मपत्रियां हैं। यदि मुझे अकेले उन सबको परखना पड़े तो बहुत दिनों का समय लग जाएगा। यदि आप थोड़ी मदद कर दें तो काम चुटकियों में पूरा हो जाएगा। इसलिए उन जन्मपत्रियों को जरा देखकर उनमें से सबसे उपयुक्त जन्मपत्री चुनकर इन्हें विदा कर सकें, तो मुझे बड़ी सहायता होगी और हम दोनों भी मुक्त मन से बातचीत कर सकेंगे।"

यह सुनकर मूत्ततु ने तुरंत कहा, "हां-हां, क्यों नहीं, यह काम मैं अभी किए देता हूं।" और पोट्टि से सभी जन्मपत्रियां लीं और उनमें से एक को निकालकर जरा उलट-पलटकर देखकर कहा, "यह नहीं चलेगी"। इसके बाद उसने कई अन्य जन्मपत्रियों को भी एक-एक करके अस्वीकार किया और अंत में एक जन्मपत्री हाथ में लेकर बोला, "इसे शास्त्रीय ढंग से परखा जाए तो यह इनकी जन्मपत्री के साथ अच्छी तरह मिल जाएगी। लेकिन यह लड़की विवाह के लिए इन्हें नहीं मिल पाएगी, बस यही एक दोष है इसमें।" मूत्ततु के ये शब्द सुनकर पोट्टि ने देखा कि वह जन्मपत्री किस लड़की की है और तब कहा, "जन्मपत्री मेल खा जाए तो इस लड़की को प्राप्त करने में मुझे कोई कठिनाई नहीं होगी। इसके घराने और मेरे घराने के बीच बहुत पुराने समय से ही अच्छे संबंध हैं।" तुरंत मूत्ततु ने कहा, "आप कोशिश करके देख लीजिए। अंत में मेरे कहे अनुसार ही सब होगा। आपका विवाह एक दूसरी कन्या से होगा। लेकिन उससे भी कोई फल नहीं निकलेगा। वह स्त्री संतान जनने से पहले ही मर जाएगी। संतान-प्राप्ति के लिए आपको एक और शादी करनी पड़ेगी।" यह सब सुनकर पोट्टि को बिलकुल विश्वास नहीं हुआ और उसने कहा, "मैं जरा आजमाकर देखता हूं" और वह सभी जन्मपत्रियों को लेकर चला गया। संप्रति पिल्लै के साथ कुछ देर वार्तालाप करने के पश्चात मूत्ततु भी वहां से चला गया।

पोट्टि ने मूत्ततु द्वारा अपने लिए चुनी गई लड़की के यहां जाकर वहां के बड़े-बूढ़ों पर अपनी इच्छा प्रकट की। वे उस कन्या का विवाह उससे करने के लिए प्रसन्नतापूर्वक राजी हो गए। तत्पश्चात कुछ प्रतिष्ठित व्यक्तियों की मध्यस्थता में स्त्रीधन में दिए जानेवाले सामान आदि की चर्चा हुई और शादी का मुहूर्त निश्चित किया गया। लड़की के घर में शादी की सभी तैयारियां आरंभ हो गईं और पुरोहितों को बुलाया गया और मित्रों व नातेदारों को निमंत्रण भेजे गए। मुहूर्त के समय सभी लोग कन्या के घर एकत्र हुए। दूल्हा भी सज-धजकर और शादी के पूर्व की रस्में पूरी करके वहां आ पहुंचा। तब वहां एकत्र हुए लोगों में किसी बात को लेकर झगड़ा छिड़ गया और वह इतना बढ़ा कि सभी पोट्टी लोग दो पक्षों में बंट गए। अंत में एक पक्ष के लोगों ने कहा, "इस व्यक्ति को यदि आप कन्यादान करेंगे, तो हम सब आपके यहां कभी कदम नहीं रखेंगे।" दूसरे पक्ष ने कहा, "यदि इसे कन्यादान नहीं करेंगे तो हम आपको किसी भी सामाजिक कार्य में सम्मिलित नहीं करेंगे।" कन्या के पिता के लिए किसी भी पक्ष का समर्थन करना संभव न होने से वह बहुत कठिन स्थिति में पड़ गया। दोनों पक्षों में उसके निकट के रिश्तेदार, प्रभावशाली व्यक्ति और योग्य पुरुष थे। इसलिए किसी भी पक्ष की उपेक्षा करने की हिम्मत उसकी नहीं हुई। अंत में उसने यही तय किया कि जो पक्ष बहुमत में हो, उसी की बात मानूंगा और कहा, "आप ही कोई उपाय सुझाएं।" यह सुनकर एक पोट्टी ने तुरंत कहा,"इसके बारे में आप कुछ भी चिंता न करें। आपकी कन्या से मैं इसी समय विवाह कर लेता हूं। मुझे स्त्रीधन के रूप में एक पैसा भी नहीं चाहिए। लेकिन इसे अपनी बेटी हरगिज न दें। यदि आप सहमत हैं तो कहिए, मैं अभी स्नानादि करके आता हूं"। दूसरा कोई उपाय न देखकर कन्या के पिता को सहमत होना पड़ा। वह पोट्टी स्नान करके आया और कन्या के पिता ने अपनी कन्या का विवाह उसके साथ विधिवत कर दिया। तब उस कन्या से विवाह करने पहले आए पोट्टि की स्थिति रुक्मिणी-स्वयंवर में शिशुपाल की-सी हो गई। यह देखकर विरोधी पक्ष के एक पोट्टि ने कहा, "आप बिलकुल परेशान न हों। मैं आपकी शादी कराऊंगा। मेरे साथ आइए। मैंने अपनी बेटी आपको देने का निश्चय कर लिया है। यहां जो स्त्रीधन तय हुआ है, उससे दुगुना स्त्रीधन भी मैं दूंगा।" पहले वाला पोट्टि इसके लिए तैयार हो गया। तब उस पक्ष के सभी पोट्टि वहां से चलकर दूसरे पोट्टि के यहां गए। इस प्रकार उसी मुहूर्त में दो-दो विवाह संपन्न हुए। यह सब मंगलपिल्लै मूत्ततु की भविष्यवाणी के अनुसार ही हुआ, लेकिन उस समय हठ और दुराग्रह का बाजार गरम होने से पोट्टी का ध्यान इस ओर नहीं गया। शादी होने के बाद ही उसे नालेकाट्टु में मूत्ततु की बातें याद आईं और उसने मूत्ततू को मन ही मन आदरपूर्वक प्रणाम किया। उसके मन में यह जिज्ञासा भी हुई कि क्या मूत्ततु की कही बाकी बातें भी सच निकलेंगी? छह ही महीने में उस पोट्टि की पत्नी मर गई और तब मूत्ततु की बातों को शत प्रतिशत सही हुआ देखकर पोट्टि के मन में मूत्ततु पर अनन्य श्रद्धा हो गई।

(... जारी)

1 Comment:

P.N. Subramanian said...

रोचक. पठन भी जारी...

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