06 मई, 2009

7. तलक्कुलत्तूर भट्टतिरी और पाषूर की कुटियां - 1

(कोट्टारत्तिल शंकुण्णि विरचित मलयालम ग्रंथ ऐदीह्यमाला का हिंदी रूपांतर)

सुप्रसिद्ध तलक्कुलत्तूर भट्टतिरी का घराना ब्रिटिश मलबार में था। यह तो सभी जानते हैं कि ये एक बहुत अच्छे विद्वान और ज्योतिषी थे। प्रश्न विचारने का शौक इन्हें लड़कपन से ही था। जब ये ब्रह्मचारी थे, तब खेलते वक्त प्रत्येक विद्यार्थी मनोरंजन एवं समय बिताने का कोई-न-कोई विशिष्ट कार्य करने लगता। ऐसे अवसरों पर इनकी बारी आने पर ये प्रश्न विचारकर सहपाठियों का भविष्य बताया करते थे। एक दिन जब इनके शिक्षक कहीं बाहर गए, तब सभी ब्राह्मण बालकों ने अपने-अपने ढंग से खेलना-कूदना आरंभ किया। भट्टतिरी कौड़ियों के स्थान पर कुछ कंकड़ लेकर प्रश्न विचारने लगे। यह देखकर बाकी सब बालक भी उनके चारों ओर इकट्ठे हो गए। एक लड़के ने कहा, "ठीक है, आज प्रश्न विचारकर यही बाताओ कि हमारे शिक्षक नंबूदिरी निःसंसान क्यों हैं?"

तुरंत भट्टतिरी ने प्रश्न विचारने की सभी रस्में पूरी कीं और कहा, "बच्चों के शाप के ही कारण ये निःसंतान हैं।" तब दूसरे एक लड़के ने कहा, "इसका उपाय क्या है?" भट्टतिरी ने एक बार फिर विचारकर कहा, "खूब मीठा खीर बनाकर यदि ये एक साल तक बिना चूके रोज ब्राह्मण बालकों को खिलाएंगे और अपने शिष्यों को मारना छोड़ देंगे, तो इनके यहां संतान होगी।"

बच्चों के अनजाने ही उनको पढ़ाने वाले नंबूदिरी वापस आकर उनके क्रियाकलाप जानने के इरादे से छिपकर यह सब देख रहे थे। भट्टतिरी का प्रश्न विचारना और उनके द्वारा बताया गया उपाय सब उन्होंने देख-सुन लिया। इसके बाद वे चुपके से वहां से खिसक गए और थोड़ी देर बाद दुबारा सबके देखते लौट आए। इन्हें आते हुए देखकर बच्चों ने अपना खेल तुरंत बंद कर दिया और नंबूदिरी ने उन्हें जो जो काम दिया था उसे बड़े मनोयोग से करने का स्वांग करने लगे। शिक्षक नंबूदिरी ने हर रोज के विपरीत उनकी यह उद्दंडता देखकर न तो कुछ टोका न ही उनके चेहरे के भाव विकृत हुए। ये नंबूरी अपने शिष्यों को निर्ममता से पीटते थे। इसलिए उनके मन में संशय जागा कि शायद इसी वजह से मुझे संतान नहीं हो रही। इस लिहाज से भट्टतिरी का प्रश्न विचारना ठीक हो सकता है और उसका बताया हुआ उपाय काम कर सकता है, यह सोचकर अगले ही दिन से उन्होंने खूब मीठी खीर बनाकर अपने शिष्यों को खिलाना शुरू कर दिया और बच्चों को मारना भी छोड़ दिया। इस तरह जब एक वर्ष पूरा हुआ तो इस नंबूदिरी के यहां एक बालक पैदा हुआ। उन्हें बड़ी खुशी हुई और भट्टतिरी को बुलाकर उन्होंने कहा, "बेटे, तू ज्योतिष-शास्त्र का अध्ययन कर। तू बड़ा अच्छा भविष्यवक्ता बनेगा" और उसके सिर पर हाथ रखकर उसे आशीर्वाद दिया।

गुरु द्वारा इस प्रकार अनुगृहीत होकर भट्टतिरी ने निश्चय किया कि उनके कथन को सही सिद्ध करके दिखाऊंगा, और वेदाध्ययन पूरा होने के पश्चात ज्योतिषशास्त्र पढ़ना आरंभ कर दिया। इसके साथ-साथ काव्य, नाटक, अलंकार, शब्दशास्त्र आदि का भी अभ्यास शुरू कर दिया। इस प्रकार विद्यार्थी-जीवन पूरा हो जाने के पश्चात और यौवनावस्था की दहलीज पर पहुंचते-पहुंचते भट्टतिरी प्रकांड विद्वान और ज्योतिषशास्त्र के अच्छे आचार्य हो गए।

इसके पश्चात उन्होंने विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया और उन्हें एक पुत्र भी हुआ। इस पुत्र की जन्मपत्री उन्होंने बड़े ध्यान से बनाई और तब उन्हें विदित हुआ कि पुत्र को लंबी आयु प्राप्त है। लेकिन बच्चा साल भर भी नहीं जिया। तब भट्टतिरी को अत्यंत दुख हुआ और यह शंका भी हुई कि शायद ज्योतिषशास्त्र विश्वास करने योग्य नहीं है। इस शंका के निवारण के लिए वे तुरंत मृतक की जन्मपत्री साथ लेकर तंजनूर में रहनेवाले आलवार के रूप से प्रसिद्ध महात्मा के यहां चल पड़े। जब भट्टतिरी उनके यहां पहुंचने ही वाले थे, तब कुछ लक्षणों को देखकर आलवार को उनके आगमन की सूचना मिल गई और उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "अभी एक मृतक की जन्मपत्री लेकर केरल के एक ब्राह्मण यहां पधारेंगे। उनसे कहना कि मृतक की जन्मपत्री यहीं रखकर अंदर आकर बैठें"। यह आदेश देकर वे नित्यकर्मों और अन्य अनुष्ठानों में लग गए। भट्टतिरी के वहां पहुंचने पर आलवार के शिष्यों ने अपने गुरु के वचनों से उन्हें अवगत कराया और उसे सुनकर भट्टतिरी को आलवार की योग्यता पर विस्मय हुआ और मृतक की जन्मपत्री फेंककर वे भवन के अंदर प्रविष्ठ हुए।

कुछ समय बाद आलवार उनके पास आ गए। उनसे हुए परस्पर संभाषण से भट्टतिरी का सारा संशय दूर हो गया। आलवार के यह समझाने से कि ज्योतिषशास्त्र कभी भी धोखा नहीं देता, तथा भविष्यवक्ता यदि इष्टदेवता की उपासना न करे और उसे मंत्रसिद्धि प्राप्त न हुई हो तो उसके कथन गलत होते हैं, भट्टतिरी यह जान गए कि उनकी तैयार की हुई जन्मपत्री इसलिए गलत निकली कि इष्टदेव की उपासना में कसर रह गई तथा उन्हें मंत्रसिद्धि प्राप्त नहीं थी। इसके बाद वे वहां से लौट गए।

लौटते समय वे तृश्शिवपेरूर आकर वडक्कुमनाथन का भजन करने लगे और उन्होंने एक विशिष्ट मंत्र और अक्षर-संख्या का पारायण शुरू कर दिया। उसी दौरान उस मंदिर की मूर्ति पर चढ़ाई गई एक कीमती मणि खो गई और मंदिर के अधिकारियों ने अनेक प्रश्नवाचकों को बुलाकर उनसे इसके बारे में परामर्श लिया। उन्होंने प्रश्न विचारकर कहा कि चोर का रंग काला है और उसके नाम के अक्षरों में 'क' और 'आ' अक्षर भी शामिल हैं। यह सुनकर अधिकारियों ने सांवले रंग के और करुआ नाम के एक भृत्य को बंदी बना लिया और उसे तरह-तरह की यातनाएं देकर पूछ-ताछ करने लगे। परंतु इससे मणि के संबंध में कुछ भी ज्ञात न हो सका। भट्टतिरी विशिष्ट मंत्र और अक्षर-संख्या के पारायण में तल्लीन थे और उन दिनों मौन व्रत धारण किए हुए थे। इसलिए उनसे भी कुछ पूछा नहीं जा सकता था।

भट्टतिरी का मौनव्रत समाप्त होने पर मंदिर के अधिकारियों ने उनसे भी मणि के संबंध में प्रश्न विचारने के लिए अनुरोध किया और उन्होंने ऐसा करके बताया कि मणि चुरानेवाला एक कौआ है और उसने उसे उत्तरी दिशा में स्थित एक नारियल के पेड़ में अपने घोंसले में रखा है। जब इस संकेत के अनुसार भट्टतिरी द्वारा सूचित पेड़ पर बने घोंसले को टटोला गया, तो मणि उसमें मिल गई। इसकी खबर पाकर कोच्ची के महाराजा भट्टतिरी पर अतीव प्रसन्न हुए और उन्हें अनेक पदवियों से विभूषित किया।

तत्पश्चात भट्टतिरी ने तिरुविदांकूर के महाराजा के सान्निध्य में रहकर अनेक बार प्रश्न विचारा तथा बहुत से जाने-माने लोगों के लिए जन्मपत्रियां बनाकर दीं। चूंकि ये सब शतप्रतिशत सही साबित हुईं, इस महाराजा ने भी उन्हें अनेक प्रकार से सम्मानित किया।

...(अगले लेख में जारी)

1 Comment:

RAJ said...

Viswas nahi hota ki ab tak mai itne mahan sahitya se vanchit tha......
Lot of thanks to you for this Great job .

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