20 मई, 2009

11. पुलियांपिल्ली नंबूरी - 1

(कोट्टारत्तिल शंकुण्णि विरचित मलयालम ग्रंथ ऐदीह्यमाला का हिंदी रूपांतर)

ये एक उत्तम ब्राह्मण और एक निष्ठावान शाक्त थे। बरसों से ये प्रतिदिन देवी की उपासना करते आ रहे थे और मंगलवार, शुक्रवार, अमावास आदि को मद्यमांस आदि द्रव्यों से विधिपूर्वक शक्तिपूजा करते थे। पूजा के बाद जी भरकर मद्य का सेवन करने की भी इन्हें आदत थी। देवी इनके सामने प्रत्यक्ष होती थी।

अन्य ब्राह्मणों को मालूम था कि ये मद्यमांस का सेवन करके शक्तिपूजा करते हैं और खूब शराब भी पीते हैं, लेकिन इनके दिव्यत्व के कारण लाख कोशिश करने पर भी वे इसके बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं जुटा पाए और इनको भ्रष्ट घोषित करने में असफल रहे। इनकी गैरहाजिरी में नंबूरी लोग एकत्र होकर कहते, "यह आदमी बेहद नीच है। क्या यह सब किसी ब्राह्मण को शोभा देता है? अब से हमें इस मद्यप को अपने घरों में किसी भी अवसर पर निमंत्रित नहीं करना चाहिए। बिन बुलाए आ जाए तो मार-मारकर बाहर निकाल देना चाहिए। हम सबको इसके घर जाना भी बंद कर देना चाहिए, अवसर चाहे जो हो।" लेकिन इनके सामने ऐसा बोलने की किसी की हिम्मत नहीं होती थी। जब ठोस सबूत ही न हो तो किसी को भ्रष्ट किस आधार पर घोषित किया जाए? इसलिए सबूत इकट्ठा करने का निश्चय करके उस देश के सभी नंबूरी सतर्क रहने लगे।

एक दिन नंबूरियों को सूचना मिली कि पुलियांपिल्ली नंबूरी शुक्रवार की शक्तिपूजा के लिए मद्य खरीदने निकले हैं। तुरंत बहुत से नंबूरी मिलकर रास्ते में इस इरादे से खड़े हो गए कि पुलियांपिल्ली नंबूरी को मद्य लेकर लौटते समय रंगे हाथों पकड़ लेंगे। कुछ समय बाद पुलियांपिल्ली नंबूरी मद्य का कलश सिर पर रखकर आते दिखाई दिए। पास आने पर सबने उन्हें घेर लिया। अपनी योजना को सफल मानकर वे सब उत्साह से पुलियांपिल्ली नंबूरी से पूछने लगे, "इस कलश में क्या है?" पुलियांपिल्ली नंबूरी समझ गए कि मुझे भ्रष्ट घोषित करने के लिए ही सबने मुझे इस प्रकार रोका है। उनकी यह चाल निश्चय ही खाली जाएगी, यह वे जानते थे। लेकिन उन्होंने तय किया कि उन सबको थोड़ा और उत्तेजित करके, बाद में उन्हें एक ही झटके में मूर्ख बनाऊंगा और वे चुपचाप अपराधी का सा भाव करके खड़े हो गए। यह देखकर अन्य नंबूरियों का जोश आसमान चढ़ने लगा और वे सब शोर करने लगे, "कलश में क्या है? कलश में क्या है?" पुलियांपिल्ली नंबूरी मुंह लटकाकर, किसी से भी नजरें न मिलाते हुए, नीचे की ओर देखते हुए यों खड़े रहे मानो उनसे कोई बहुत बड़ा अपराध हो गया हो, और धीमी आवाज में बोले, "इसमें खास कुछ नहीं है।" तब कुछ लोगों ने कहा, "तब कलश उतारकर उसे खोलकर हमें दिखाइए।" कुछ लोगों ने जबर्दस्ती कलश को नीचे उतार भी दिया। उतारते समय कलश में से शराब की गंध-सी आई तो उन सबका उत्साह और भी अधिक बढ़ गया, और वे सब कलश को खोलकर देखने की जिद करने लगे। तब पुलियांपिल्ली नंबूरी ने कहा, "देखकर क्या करेंगे? इसमें बस कुछ सुपारियां हैं। मेरी पत्नी ने आज खाने के लिए सुपारी ले आने को कहा था"। तब नंबूरियों ने जवाब दिया, "हम भी देखेंगे यह सुपारी।" अब ज्यादा क्या कहें, कलश को खोलकर दिखाने में वे जितना अधिक हिचकिचाए, उतना ही अन्य नंबूरियों का विश्वास दृढ़ होता गया कि इसमें शराब ही है, और उन्होंने जिद ठान ली कि कलश खुलवाकर ही रहेंगे। जब पुलियांपिल्ली नंबूरी समझ गए कि कलश खोले बगैर काम नहीं चलेगा, तब उन्होंने कहा, "ठीक है, जैसी आप की इच्छा," और कलश खोल दिया। जब नंबूरियों ने उसके अंदर झांककर देखा तो उसमें अव्वल दर्जे की सुपारी भरी हुई थी। कहने की जरूरत नहीं कि यह देखकर वे सब झेंपते हुए वहां से खिसक गए। सबके जाने के बाद पुलियांपिल्ली नंबूरी कलश को पुनः ढक कर उसे उठाकर घर आ गए। पूजा के समय वह सुपारी पुनः मद्य में बदल गई।

इस तरह के अनेक षडयंत्रों के बाद भी नंबूरी लोग उनके शराब पीने के संबंध में रत्ती भर सबूत भी इकट्ठा नहीं कर पाए। पूजा की क्रियाएं और शराब पीना सब घर के भीतर बंद किवाड़ों के पीछे चलता था, वह भी रात के वक्त। शराब के नशे में चूर होकर वे घर के अंदर ही बेहोश पड़े रहते थे। अपने नौकरों से उन्होंने कह रखा था कि ऐसे समय मुझसे कोई मिलने आए तो कह देना, "अभी मालिक को फुरसत नहीं है, सुबह आएं।" इसलिए रात के समय बंद दरवाजे के पीछे उन्हें नशे में द्युत्त पड़ा कोई देखे भी कैसे? सुबह जब वे घर से बाहर निकलते थे तब तक शराब का नशा उतर चुका होता था और तब वे पिए हुए भी नहीं होते थे।

इस प्रकार उन्हें मद्यप सिद्ध करने के लिए बेकार में काफी परेशान होने के बाद सब नंबूरियों ने राजा से शिकायत की। राजा ने कहा, "शक्तिपूजा के दिन का ठीकठीक पता लगाकर मुझे बताएं तो मैं कोई उपाय करूंगा।" फिर सभी नंबूरियों ने मिलकर पता लगाया कि चौमासे की पहली अमावस की रात को पुलियांपिल्लि नंबूरी शक्तिपूजा करने वाले हैं और यह जानकारी राजा तक पहुंचा दी गई। पुलियांपिल्ली नंबूरी ने हर बार की तरह उस अमावस की रात को पूजा की और मद्य पीकर बेहोश हो गए। जब वे इस हालत में थे तब कुछ राजकर्मचारी उन्हें राजा के पास ले जाने के लिए उनके द्वार पर आए। दासियों के माध्यम से उन्होंने अपने आगमन का कारण नंबूरी की पत्नी को कहलवाया। पत्नी ने नंबूरी के कान में यह सब समाचार कह सुनाया। तब बेहोशी की हालत में नंबूरी बड़बड़ाए, "चांद निकल आने पर मैं आ जाऊंगा। अभी इस अंधकार में आना जरा मुश्किल होगा।" पत्नी ने यह बात राजकर्मचारियों को कहलवा दी और वे यह समाचार लेकर राजा के पास लौट गए।

राजा के बुलाने पर पुलियांपिल्ली नंबूरी किस हालत में आते हैं, यह देखने के लिए असंख्य नंबूरी राजमहल में एकत्र हो गए थे। तब तक वे राजकर्मचारी वहां आ गए और उन्होंने राजा से निवेदन किया, "नंबूरी ने कहलवाया है कि वे चांद उग आने पर आ जाएंगे।" यह सुनकर सबने समझ लिया कि यह असंगत बात नंबूरी ने शराब के नशे में कही है। अमावस की रात को चांद कैसे उग सकता है? यह तो असंभव है। तब तक काफी रात हो चुकी थी। इसलिए नंबूरी लोग अपने-अपने घर नहीं गए। राजा के अपने शयन-कक्ष में चले जाने के बाद वे सब राज महल में ही इधर-उधर लेट गए।

जब लगभग आधी रात हो गई, तब पुलियांपिल्ली नंबूरी को होश आया। तब उन्हें धुंधली-सी याद आई कि राजकर्मचारी आए थे और उनसे मैंने कुछ उल्टी-सीधी बात कह दी थी। पत्नी से पूछने पर उसने सब कुछ सही-सही बता दिया। जब नंबूरी ने सुना कि उन्होंने राजा से कहलवाया है कि चांद निकलने पर आऊंगा, तो पल भर के लिए वे दहल गए।

लेकिन उन्हें यह दृढ़ विश्वास भी था कि समस्त लोकों की माता देवी का वरदहस्त मुझ पर होने से मेरा किसी प्रकार का नुक्सान या अपमान नहीं हो सकता। इसलिए वे बिना संकोच के घर से निकल पड़े। बाहर निकलकर उन्होंने देखा कि आकाश में पूर्णचंद्र विराजमान है और चारों ओर चांदनी छिटकी हुई है। यह चमत्कार देखकर वे खुशी-खुशी राजमहल की ओर बढ़े और वहां पहुंच कर राजा के शयनकक्ष का दरवाजा जोर से खटखटाया। तुरंत राजा की नींद टूटी और उन्होंने पूछा, "कौन है?" "मैं हूं, पुलियांपिल्ली नंबूरी," नंबूरी ने कहा। तब राजा ने कहा, "क्यों, चांद उग आया?" "हां, बाहर आएंगे तो दिखाई देगा।" नंबूरी ने उत्तर दिया। तुरंत राजा बाहर आ गए और उन्होंने आसमान में पूर्णिमा के चंद्र को चमकते पाया। चारों ओर चांदनी छाई हुई थी। यह देखकर उन्हें अतीव विस्मय हुआ और उन्होंने राजसेवकों को भेजकर सभी नंबूरियों को वहां बुलवाया। वे सब भी आश्चर्यचकित रह गए। राजा ने पुलियांपिल्ली नंबूरी को असंख्य पुरस्कारों से लाद दिया और आदरपूर्वक घर भिजवाया। जब पुलियांपिल्ली नंबूरी अपने घर पहुंच गए तब आकाश से चांद गायब हो गया और चारों ओर अमावस का घोर अंधकार छा गया। उस अमावस की रात जो चांद और चांदनी दिखाई दिए थे वह वास्तविक नहीं थे यह कहना अनावश्यक है। भक्तवत्सला देवी ने अपने प्रिय भक्त नंबूरी को अपमान से बचाने के लिए अपने कानों का एक कुंडल उतारकर उसे उंगली में थाम लिया था। इसे देखकर लोगों को चांद का और उसकी चमक से चांदनी का भ्रम हो गया था।

इस प्रकार बहुत लोगों ने बहुत प्रकार से पुलियांपिल्ली नंबूरी को अपमानित करने का तथा उन्हें मद्यप सिद्ध करने का प्रयत्न किया, लेकिन सफल न हो सके। जिन्हें देवी का संरक्षण प्राप्त हो, उन्हें कोई जीत कैसे सकता है?

(... जारी)

9 Comments:

PN Subramanian said...

बहुत सुन्दर. आपको अनेकों बधाईयाँ. हमारे एक ब्लॉगर मित्र (बहुत ही प्रतिष्टित) हैं उनकी इस साईट को भी देख लें.http://historicalleys.blogspot.com/2009/05/prosperity-at-marketplace-calicut.html

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

सुब्रमण्यम जी: इस कड़ी के लिए धन्यवाद। उसे देख आया। दरअसल अगली बार मैं यही कहानी पोस्ट करनेवाला हूं।

RAJ said...

Sir a lot of thanks for these intresting stories and this great job.

Is the Hindi version of Aithihyamala available in market?
If yes please give information.

Your fan Raj......

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

यह बताइए कि नम्बूरी होता है या नम्बूदरी. इन दोनों में यदि अन्तर है तो क्या है?

जहां तक मुझे पता है आदि शंकराचार्य नम्बूदरी ब्राह्मण थे।

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

गिरिजेश जी: सही शब्द नंबूतिरी या नंबूदिरी होता है (मलयालम में त अक्षर का उच्चारण हिंदी के द अक्षर के समान होता है)। नंबूतिरी/नंबूदिरी को संक्षिप्त करके नंबूरी भी बोला जाता है।

नंबूरी/नंबूदिरी केरल के ब्राह्मण के कहते हैं। आदि शंकराचार्य भी केरल के एक ब्राह्मण थे, यानी नंबूदिरी।

कोट्टरत्तिल शंकुण्णि ने अपने ग्रंथ में इन्हीं नंबूरियों का गुण-गान किया है। आपने देखा होगा कि हर कहानी में नंबूरी का ही पलड़ा भारी रहता है।

इन कहानियों की रोचकता बनाए रखने के लिए, पढ़ते वक्त हमें लेखक के इस पक्षपात को नजरंदाज करना पड़ेगा।

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

राज: ऐदीह्यमाला की इन कहानियों का छिटपुट अनुवाद हिंदी में हुआ है और एक छोटी पुस्तक भी प्रकाशित हुई है। इसे मैंने कुछ पुस्तकालयों में देखा है। अब मुझे याद नहीं आ रहा कि इसके अनुवादक कौन थे और प्रकाशक कौन थे।

जहां तक मैं जानता हूं संपूर्ण ऐदीह्यमाला का सांगोंपांग अनुवाद पहली बार इस ब्लोग के जरिए हिंदी जगत के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है।

अंग्रेजी में ओक्सफोर्ड ने लोर एंड लेजेंड्स ओफ केरला के नाम से इन कहानियों का अनुवाद प्रस्तुत किया है। अनुवादक हैं टी सी नारायणन। मैंने यह किताब पढ़ी नहीं है इसलिए कह नहीं सकता कि इसमें ऐदीह्यमाला का पूरा-का-पूरा अनुवाद दिया गया है अथवा कुछ चुनी हुई कहानियों का।

Calicut Heritage Forum said...

This is a commendable job. Such efforts to introduce the classics from one literature to another enriches both and promotes a better understanding of the richness of our local cultures. This will also help us realise the true spirit behind the cliche 'unity in diversity'. Please accept our congratulations and keep up the good work!
Incidentally, on a point of clarification: The word Aythihyamala has a Sanskrit origin and the root is Itihaasa. Should it be written Aydihyamala as you do or as Aythihyamala (is it 'd' or 't'?)

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण said...

Calicut Heritage Forum: This is a valid point that you have raised. It also concerns how the word Nampoodiri is written in Hindi -- नंबूदिरी or नंबूतिरी।

If we go by corresponding letters of the alphabet of Malayalam and Hindi, नंबूतिरी or ऐतीह्यमाला would be correct.

But in Malayalam, the letter त is pronounced like the letter द of Hindi. So if we phonetically transliterate, नंबूदिरी or ऐदीह्यमाला seems correct.

I am a bit confused on this point. As you point out ऐतीह्य is the correct Sanskrit term and it is related to इतिहास. But the term itself is pronounced as एदीह्यम in Malayalam.

I will welcome your suggestion on this issue. If you feel एतीह्य and नंबूतिरी are the correct spellings, I will change to these spellings throughout.

And thank you for visiting Keral Puran. You have a great blog on Kerala yourself.

RAJ said...

सुब्रमण्यम जी जानकारी के लिए धन्यवाद ..........
आशा करता हूँ भविष्य मे इस ब्लॉग की कहानियों को एक किताब के रूप मे पढ़ सकूँगा........
यदि ऐसा संभव हो सके तो बहुत ही अच्छा होगा.......

यहाँ उत्त्तर प्रदेश और दिल्ली में लोग इन कहानियों को पढ़ना चाहते हैं ......
मैने जिन्हे भी इस ब्लॉग का लिंक दिया वे सब आपके अभारी हैं.......

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