30 मई, 2009

15. मंगलप्पिल्लि मूत्ततु और पुन्नयी का पणिक्कर - 2

(कोट्टारत्तिल शंकुण्णि विरचित मलयालम ग्रंथ ऐतीह्यमाला का हिंदी रूपांतर)


15. मंगलप्पिल्लि मूत्ततु और पुन्नयी का पणिक्कर - 1

इसके बाद यह सोचकर कि मुझे एक बार फिर विवाह करना होगा, पोट्टि योग्य कन्याओं की जन्मपत्रियां इकट्ठी करने लगा। इस बार मूत्ततु से इन जन्मपत्रियों को जंचवाकर और उनसे ही अपने लिए योग्य कन्या का चयन करवाकर शादी करने का निश्चय करके पोट्टि सभी जन्मपत्रियां लेकर आरन्मुल में मूत्ततु के घर पहुंच गया। तब मूत्ततु देवदर्शन करने मंदिर गया हुआ था। जब वह लौटा तो पोट्टि को जन्मपत्रियों की पोटली लिए वहां विराजमान देखकर उससे पूछा, "क्यों जनाब, सब मेरे कहे अनुसार घटा कि नहीं? अब एक विवाह और करना है, क्यों?" तब पोट्टि ने कहा, "सब आपके कहे अनुसार ही घटा। अब आगे क्या करूं, यह भी आप ही बताएं। दस-बीस कन्याओं की जन्मपत्रियां मैं यहां ले आया हूं। भोजन करके उन्हें सब जरा देखकर उनमें से कोई उपयुक्त हो तो बताएं।" तुरंत मूत्ततु ने कहा, "मेरे देखने-सोचने लायक कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी मन में आता है, वही कह देता हूं। ईश्वरानुग्रह से और गुरु की कृपा से मेरे अधिकांश वचन सही सिद्ध होते हैं। इसलिए आपकी समस्या मैं अभी हल किए देता हूं। जन्मपत्रियों की उस पोटली में ऊपर की दो को हटाकर तीसरी पत्री निकालें। वह कार्तिक नक्षत्र में पैदा हुई एक कन्या की होगी। वह आपके लिए अनुरूप कन्या है। जाकर उससे विवाह कर लें। कोई भी दोष नहीं होगा। इस पत्नी से आपके दो बेटे और एक बेटी होंगे। चौथा गर्भ टिकेगा नहीं। इसके बाद वह प्रसव नहीं करेगी। इससे अधिक जानने में आपको इस समय रुचि भी नहीं होगी। अब आप चाहें तो जा सकते हैं। बैठना चाहें, तो यहां बैठ जाएं। मैं जाकर जल्दी खाना खा आता हूं।" पोट्टि वहां नहीं रुका, उसी समय प्रसन्न मन से चला गया। मूत्ततु भी भोजन करने घर के अंदर चला गया।

पोट्टि ने जाकर उसी कन्या से विवाह किया जिसे मूत्ततु ने उसके लिए उपयुक्त बताया था। उस स्त्री से उसके दो बेटे और एक बेटी हुई। चौथा गर्भ गिर गया। यह सब होने पर पोट्टि को मूत्ततु के प्रति अतुलनीय श्रद्धा हुई। वह बहुत-सा धोती-साड़ी-धन आदि लेकर सपरिवार आरन्मुलै मूत्ततु के घर गया। उसी दिन उसने बच्चों को मंदिर ले जाकर देवदर्शन कराया और स्वयं भी देवता की आराधना करके मंदिर की सभी रस्में पूरी कीं। अगले दिन अपने घर मूत्ततु के सम्मान में एक शानदार भोज दिया और मूत्ततु के घर के आबालवृद्ध सभी को नए वस्त्रादि दान देकर संतुष्ट किया।

इस प्रकार के महान "दूतलक्षणज्ञ" पहले के जमाने में केरल में बहुतेरे होते थे। आज स्थिति यह है कि ऐसे लोगों की चर्चा भी सुनाई नहीं पड़ती। दूतलक्षणज्ञों का माहात्म्य कितना प्रबल है, यह उपर्युक्त लोक-कथाओं से ही स्पष्ट है। दूतलक्षणज्ञों को लक्षण बताने के लिए पटरा-कौड़ी आदि की जरूरत नहीं होती। वे आनेवाले व्यक्ति (दूत) के शब्दों, भावों, चेष्टाओं और समय के आधार पर ही फल बता देते हैं। इसलिए दूतलक्षण एक अत्यंत विस्मयकारी एवं सुविधाजनक विद्या है।

कुमारनल्लूर के पास नेट्टाश्शेरी नामक स्थल पर पुन्नयिल नामक एक शूद्रघर है। उस घर में एक महाविद्वान और सुप्रसिद्ध ज्योतिषी कुछ समय पहले हुआ था। इस घराने को चूंकि पणिक्करी (मिस्त्री) का काम मिला था, इसलिए उसके पुरुष पणिक्कर कहलाते थे। इसलिए हमारे कथानायक और ज्योतिषी को लोग पुन्नयिल पणिक्कर ही कहते थे। कुमारनेल्लूर ग्राम का एक नंबूरी अपने पुत्र का जनेऊ करने के लिए योग्य मूहूर्त जानने हेतु बहुत से ज्योतिषों के पास गया, लेकिन कोई भी मुहूर्त नहीं बता सका। उस समय तेक्कुमकूर में सम्मिलित अनेक सामंत, वट्टप्पिल्लि शंकुमूत्ततु आदि अनेक प्रसिद्ध ज्योतिषी उसी प्रदेश में मौजूद थे। इन सबने देखकर यही कहा कि इस वर्ष इस बालक का उपनयन करने के लायक कोई मुहूर्त नहीं है। लेकिन बालक के उपनयन का समय हो जाने से वह नंबूरी पुन्नयिल पणिक्कर के पास गया और बोला कि लड़के के उपनयन के लिए किसी प्रकार एक मुहूर्त निकाल दें। पणिक्कर ने तुरंत एक मुहूर्त बता दिया और एक पर्ची लिखकर दे दी। नंबूरी वह पर्ची लेकर तेक्कुमकूर के सामंतों के पास गया और बोला, "आप सबने यही कहा था न कि मुहूर्त ही नहीं है, लेकिन पुन्नयिल पणिक्कर ने एक मुहूर्त निकालकर दे दिया है।" यह सुनने पर उन सबने कहा, "अच्छा, जरा वह पर्ची तो देखें।" नंबूरी ने पणिक्कर की दी हुई पर्ची उनको दे दी। उसे पढ़कर उन सबको विदित हुआ कि मुहूर्त लड़के की अष्टमी राशि के समय का है। तब सामंतों ने किसी को भेजकर पणिक्कर को वहां बुलवाया। चूंकि पणिक्कर ने उस प्रदेश के सभी ज्योतिषों को किसी न किसी अवसर पर पछाड़ा था, इसलिए सब पणिक्कर के प्रति ईर्ष्यालु थे। उन सबने सोचा कि पणिक्कर से बदला लेने और उसे नीचा दिखाने का यह एक सुअवसर है, और वे सब भी वहां आ गए। सबके आने के बाद पणिक्कर भी वहां पहुचा। तब सबने उससे पूछा, "अष्टमी राशि के समय उपनयन किया जा सकता है, इसका क्या प्रमाण है?" तब पणिक्कर ने कहा, "अष्टमी राशि के समय उपनयन नहीं होना चाहिए यही शास्त्र कहता है। लेकिन इस बालक का इसी समय उपनयन न करने से दूसरी परेशानियां आने की संभावना है। इस साल उपनयन के लिए इसके सिवा और कोई मुहूर्त न होने से मैंने इसी मुहूर्त की पर्ची बनाकर दे दी।" तब दूसरों ने कहा, "इस बालक को इसी वर्ष जनेऊ न पहनाने से क्या परेशानी हो सकती है?" तब पणिक्कर ने कहा, "अगले साल बालक की मां का देहांत हो जाएगा और वह साल शोकावधि में निकल जाएगा। इसके बाद वाले साल इसके पिता गुजर जाएंगे। इसलिए उस साल भी उपनयन नहीं हो सकेगा। शोकावधि में उपनयन वर्जित है। इस प्रकार से तीन साल बीत जाने पर बालक की आयु इतनी अधिक हो चुकी होगी कि उपनयन का समय ही उसके लिए निकल चुका होगा। ठीक समय पर उपनयन न करने से उसका ब्राह्मणत्व नष्ट हो जाएगा। इससे कहीं अच्छा है अष्टमी राशि के समय इसका उपनयन कर दिया जाए।" यह सुनकर सबने कहा, "यदि ऐसी बात है तो इसी मुहूर्त पर इसका उपनयन कर देना चाहिए।" और उसी मुहूर्त में उस बालक का उपनयन हुआ। पणिक्कर के कहे अनुसार अगले दो साल में वह बालक अनाथ हो गया। यह देखकर बाकी ज्योतिषियों के मन में पणिक्कर के प्रति जो स्पर्धा और ईर्ष्या भाव था वह असीम आदरभाव में बदल गया।

(समाप्त। अब नई कहानी)

1 Comment:

Astrologer Sidharth said...

यह दूत लक्षणज्ञ वाली बातें अब तो कहीं देखने में भी नहीं आती। हां ओमेन के नाम पर कुछ अंश हैं लेकिन वे भी इतने हल्‍के हैं कि संकेतों के अर्थ स्‍पष्‍ट नहीं आते।


खैर एक और सुंदर कथा के लिए आभार

और कहानी के पहले हिस्‍से का लिंक देने के लिए धन्‍यवाद।

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