(कोट्टारत्तिल शंकुण्णि विरचित मलयालम ग्रंथ ऐदीह्यमाला का हिंदी रूपांतर)
एक दिन भट्टतिरी ने निश्चय किया कि स्वयं अपनी जन्मकुंडली की एक बार बारीकी से जांच करनी चाहिए। ऐसा करने पर उन्हें भविष्य में अपने जातिभ्रष्ट होने के बारे में पता चला। जन्मकुंडली लिखकर उन्होंने उसे एक जगह सुरक्षित रख दिया, लेकिन अपने भावी अधःपतन के संबंध में किसी से भी नहीं कहा।
इसके कुछ समय बाद अत्यंत निर्धन और निकट के रिश्ते का एक ब्राह्मण गरीबी का कष्ट सह न पाने के कारण भट्टतिरी के पास आया और बोला, "आपने कई लोगों को कई मुसीबतों से बचने का मार्ग प्रश्न विचारकर बताया है। आपका उपाय हमेशा कारगर भी साबित हुआ है। कृपा करके यह बताएं कि क्या मैं इस कठिन दारिद्र्य से मुक्ति पाकर एक दिन के लिए भी सुखपूर्वक जीऊंगा?" उस दरिद्र मनुष्य की ये दारुण बातें सुनकर भट्टतिरी का कोमल हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने कुछ देर के लिए आंखें मूंदकर ध्यान लगाने के पश्चात कहा, "आप बिलकुल चिंता न करें। इस गरीबी से आपके बाहर निकलने का समय निकट आ गया है। मैं एक उपाय बताता हूं। उसका अक्षरशः पालन करें। आनेवाली द्वादशी को आधी रात को तृश्शिवपेरूर वडक्कुमन्नाथन के मंदिर के उत्तरी द्वार पर आप खड़े हो जाएं। तब वहां दो ब्राह्मण आएंगे। आप उनके पीछे हो लें। वे आपसे पीछा छुड़ाने का भरसक प्रयत्न करेंगे। लेकिन आप उनके साथ डटे रहें। आप यही रट लगाएं कि जहां वे जा रहे हैं, वहीं आपको भी ले चलें। वे पूछें कि यह उपाय आपको किसने बताया, तो उन्हें कुछ न बताएं। यदि आप ऐसा करेंगे तो आपका दारिद्र्य दूर हो जाएगा और आप सुखपूर्वक रह सकेंगे।" भट्टतिरी की यह युक्ति सुनकर ब्राह्मण को अतीव प्रसन्नता हुई। चूंकि भट्टतिरी के बताए उपाय कभी भी निष्फल नहीं होते थे, ब्राह्मण को लगा कि उसका काम बन गया है। "तब वापस लौटकर आपसे भेंट होगी।" यह कहकर वह ब्राह्मण वहां से चला गया।
भट्टतिरी के कहे अनुसार द्वादशी की अर्धरात्रि के कुछ पहले वह ब्राह्मण तृश्शूर के उत्तरी द्वार पर पहुंच गया। कुछ समय बाद दो अत्यंत तेजस्वी ब्राह्मणों को उस द्वार को पार करते हुए जाते देखकर वह ब्राह्मण उनके पीछे हो लिया। ब्राह्मणों ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए अनेक प्रकार की चेष्टाएं कीं, लेकिन सफल न हो सके। तब उन्होंने उससे पूछा, "ऐ, आप कहां जाना चाहते हैं? इस प्रकार हमारा पीछा करने का क्या मतलब है?"
ब्राह्मणः आप लोग कहां जा रहे हैं?
ब्राह्मणद्वयः- बदरी आश्रम की ओर।
ब्राह्मणः- तब मैं भी वहीं जा रहा हूं।
ब्राह्मणद्वयः- हमारे साथ ही चलना क्या जरूरी है?
ब्राह्मणः- हां, है। मैंने ऐसा ही निश्चय किया है। आप कृपा करके मुझे भी साथ ले चलें।
ब्राह्मणद्वयः- हम दोनों इस समय यहां दिखेंगे, यह आपको किसने बताया?
ब्राह्मणः- वह मैं नहीं बताऊंगा। आप मुझे इसके लिए बाध्य भी न करें।
जब उन दोनों ब्राह्मणों ने उस ब्राह्मण की बातें सुनीं तो दोनों ने कुछ देर आपस में मशविरा किया और फिर कहा, "ठीक है। हम सब समझ गए हैं। आपको जिस व्यक्ति ने यह उपाय बताया है, उसका अधःपतन हो। आपने हमें प्रत्यक्ष देख लिया है, इसलिए आपकी उपेक्षा करके हम नहीं जा सकते। अतः आपको भी साथ ले चलते हैं। कृपया आंखें बंद रखते हुए हमें छुएं।"
ब्राह्मण ने यह सुनकर वैसा ही किया। क्षण भर बाद उन दोनों ब्राह्मणों ने उससे आंखें खोलने के लिए कहा। आंखें खोलने पर उसे मालूम हुआ कि वे तीनों बदरी आश्रम के एक भवन में खड़े हैं। तब उन दोनों दिव्य पुरुषों ने कहा, "यहां इस मकान के अंदर एक व्यक्ति अंतिम सांसें ले रहे हैं। वे आपके चाचा हैं। आपको याद होगा, आपके एक चाचा काशी चले गए थे। ये वे ही हैं। गंगास्नान के बाद अनेक तीर्थों की यात्रा करके ये यहां पहुंचे। कई वर्षों से ये यहां रहते आ रहे हैं। अब इनके स्वर्गवास का समय निकट आ गया है। हम इन्हें ले जाने के लिए आए विष्णुदूत हैं। आधे घंटे में हम इन्हें अपने साथ ले जाएंगे। इससे पहले आप चाहें तो इनसे मिल सकते हैं।" ब्राह्मण का वेष धारण किए हुए उन विष्णुदूतों का यह वचन सुनकर उस ब्राह्मण ने अंदर जाकर देखा तो विष्णुदूतों के कहे अनुसार वहां अपने चाचा को अंतिम सांसें गिनते हुए पाया। उस मरणासन्न व्यक्ति ने चूंकि अभी चेतना नहीं खोई थी, अपने भतीजे को पहचान लिया। अकेले ही परदेश में इतने दिनों रहते आने और उस समय अत्यंत अशक्त अवस्था में होने के कारण किसी स्वजन को अचानक देखकर उसे अपार संतोष हुआ। उस वृद्ध ब्राह्मण ने इतने दिनों में कमाई हुई अपनी संपत्ति जिस संदूक में रखी थी, उसकी चाबी तकिए के नीचे से निकालकर भतीजे के हाथ में दी और तुरंत ही प्राण त्याग दिए। ब्राह्मण ने अपने चाचा का अंतिम संस्कार किया और अनायास ही मिली अपरिमित दौलत लेकर घर लौट आया और भट्टतिरी के घर आकर सभी समाचार कह सुनाया। यह सुनकर कि विष्णुदूतों ने उन्हें अधःपतित होने का शाप दिया है, भट्टतिरी ने कहा, "यह तो मैंने पहले ही जान लिया था।" और अपने हाथों बनाकर रखी हुई अपनी जन्मकुंडली निकालकर ब्राह्मण को दिखाई। उसे देखकर ब्राह्मण बहुत अचंबित हुआ और अपने घर जाकर सुखपूर्वक रहने लगा। भट्टतिरी भी अपने अधःपतन की राह देखते रहे।
(... अगले लेख में जारी)
08 मई, 2009
7. तलक्कुलत्तूर भट्टतिरी और पाषूर की कुटियां - 3
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1 Comment:
रोचक !
घुघूती बासूती
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